Friday, August 21, 2009

अभी तक धुंध नहीं छटी

मित्रो देश कालओर परिस्थिति ये चीख चीख कर कह रही है किधुंध छंटने कि जगह बढती जा रही है एक दिन किसी ने कहा कि हमारे यहाँ यानि उत्तराखंड में साहित्यकार मुखिया बना है, उनके अंदर संवेदना है कुछ हालत बदलेंगे लेकिन अगले ही दिन कुछ लोग कहने लगे कि छद्म साहित्यकार हैं कोई राजनीतिज्ञ साहित्यकार नहीं हो सकता उसके अंदर संवेदना होगी भी तो राजनीती कि भेंट चढ़ चुकी होगी , फ़िर पिथोरागढ़ में बादल फट गए समस्या ओरगहरी हो गई विपछ तो तैयार ही था चिल्लाने लगा , कुदरत कि मार फ़िर विरोधियों की धार फ़िर भी सब चलता है, धुंध कम नहीं हुई अबकी बार तो जो मुखिया की दौड़ में थे दोनों ही साहित्यकार थे , माननीय निशंक जी ओर माननीय पन्त जी संवेदना के धनि दोनों ही लेकिन विद्वान् कहते हैं किसंवेदनाओं से राज नहीं चलते , अब कौन चलाये हम आपसे पूछते हैं कि कौन चलाये , बहुत दिनों से बड़ी पोस्ट भेजने का अवसर नहीं मिल रहा छमा करना व्यवधान गया फ़िर मिलेंगे
आपका अनुरागी