Monday, September 21, 2009
Tuesday, September 1, 2009
bhajapa ki dhundh
मित्रों आज हम देख रहे हैं की भाजपा एक अंतर्द्वंद से गुजर रही है ओर ये द्वंद भाजपा का ही नहीं है, ये तो उसके जन्मदाता संघ में भी है। क्योंकि अब समाज ने जो करवट बदली है, उसे समझ पाने में वो भी असमर्थ हो रहा है, क्योंकि उनकी सोच में ही कहीं न कहीं गड़बड़ झाला है, और ये जीवन जिसे हम सनातनी अजस्र प्रवाह कहते हैं। ये एक नदी की तरह है, लेकिन संसार ने अब इसके प्रवाह में कई अवरोध खड़े कर दिए हैं। जनसँख्या और उपभोक्तावाद के दबाव ने जीवन से वो सोच छीन ली है, जिससे जीवन में सौंदर्य आता था संघ के लोग अब भी दावा करते हैं की वो अपनी सोच के आधार पर ही समाज को बदल देंगे लेकिन समय कहता है की अब उन्हें बदलना होगा संघ के कुछ लोग तो स्वीकार करते हैं की जब तक जातिरुपी बुराईको मिटाया नहीं जाता तब तक देश को एक सूत्र में नही बंधा जा सकता है, लेकिन संघ कहता है, की वो किसी जाति को नहीं मानता लेकिन उसके पदाधिकारी बिना जाति संवोधन के रह नहीं पतेकैसे मिटेगा ये कलंक। जब तक आप समाज की नब्ज को ही नहीं समझ पाएंगे तब तक समाज के लिए कुछ करने की बात ही बेमानी है संघ की जो मुस्किल है वाही भाजपा की है समाज की नब्ज को समझना होगा उनके लिए कुछ करो न करो पर दिखाना होगा की तुम उनके लिए कुछ कर रहे हो,
लेकिन मुश्किल है, की भाजपा ही नहीं उसके आस पास के संगठन भी इसी पसोपेश में हैं समझ ही नहीं प् रहे की करें क्या समाज के बीच जाओ काम करो पसीना बहाओ फ़िर कुछ मिलेगा ,
अनुरागी धुंध prakash
लेकिन मुश्किल है, की भाजपा ही नहीं उसके आस पास के संगठन भी इसी पसोपेश में हैं समझ ही नहीं प् रहे की करें क्या समाज के बीच जाओ काम करो पसीना बहाओ फ़िर कुछ मिलेगा ,
अनुरागी धुंध prakash
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