ये जो छायाएं हैं बेसुमार भटक रही हैं और भटका रही हैं समूची मानव जाती को, लेकिन मनुष्य सोचता है की वो योजनागत विकास कर रहा है, संसय बरकरार है, किहमारी मंजिल क्या है फिर भी हम चले जा रहे हैं ये अजीब सी धुंध है जो हमें कुछ देखने ही नहीं देती , फिर भी हम जा रहे हैं,
दोस्तों ये धुंध जब तक हमारे सामने जालफैलाये हुए है तब तक हम सही रह पर न चल सकेंगे फिर भी चलाना तो है ही इसलिए हमें दीप जलाने कि आवश्यकता है, ये दीप अपने अंदर ही जलना होगा, संसार तुम्हारे स्वागत को तैयार खड़ा है, ये रौशनी का संसार प्यार का संसार हमें अपनी बाँहों में लेने को आतुर है आओ मिलकर दीप जलाएं अपने जीवन को कृतार्थ बनायें
मनोज अनुरागी
Wednesday, December 23, 2009
ये जो रास्ते हैं
कितना कठिन है अभिव्यक्ति का यह व्याकरण
तुमने सजाया ही कहाँ अब तक ह्रदय वातावरण
कहीं ऐसा न हो वैसा न हो संशय उठाये आपने
बिन प्रश्न ही उत्तर दिए बैठे बिठाये आपने
शून्य में सब खो गए तुमने दिए जो उदहारण
मनोज अनुरागी
तुमने सजाया ही कहाँ अब तक ह्रदय वातावरण
कहीं ऐसा न हो वैसा न हो संशय उठाये आपने
बिन प्रश्न ही उत्तर दिए बैठे बिठाये आपने
शून्य में सब खो गए तुमने दिए जो उदहारण
मनोज अनुरागी
Monday, September 21, 2009
Tuesday, September 1, 2009
bhajapa ki dhundh
मित्रों आज हम देख रहे हैं की भाजपा एक अंतर्द्वंद से गुजर रही है ओर ये द्वंद भाजपा का ही नहीं है, ये तो उसके जन्मदाता संघ में भी है। क्योंकि अब समाज ने जो करवट बदली है, उसे समझ पाने में वो भी असमर्थ हो रहा है, क्योंकि उनकी सोच में ही कहीं न कहीं गड़बड़ झाला है, और ये जीवन जिसे हम सनातनी अजस्र प्रवाह कहते हैं। ये एक नदी की तरह है, लेकिन संसार ने अब इसके प्रवाह में कई अवरोध खड़े कर दिए हैं। जनसँख्या और उपभोक्तावाद के दबाव ने जीवन से वो सोच छीन ली है, जिससे जीवन में सौंदर्य आता था संघ के लोग अब भी दावा करते हैं की वो अपनी सोच के आधार पर ही समाज को बदल देंगे लेकिन समय कहता है की अब उन्हें बदलना होगा संघ के कुछ लोग तो स्वीकार करते हैं की जब तक जातिरुपी बुराईको मिटाया नहीं जाता तब तक देश को एक सूत्र में नही बंधा जा सकता है, लेकिन संघ कहता है, की वो किसी जाति को नहीं मानता लेकिन उसके पदाधिकारी बिना जाति संवोधन के रह नहीं पतेकैसे मिटेगा ये कलंक। जब तक आप समाज की नब्ज को ही नहीं समझ पाएंगे तब तक समाज के लिए कुछ करने की बात ही बेमानी है संघ की जो मुस्किल है वाही भाजपा की है समाज की नब्ज को समझना होगा उनके लिए कुछ करो न करो पर दिखाना होगा की तुम उनके लिए कुछ कर रहे हो,
लेकिन मुश्किल है, की भाजपा ही नहीं उसके आस पास के संगठन भी इसी पसोपेश में हैं समझ ही नहीं प् रहे की करें क्या समाज के बीच जाओ काम करो पसीना बहाओ फ़िर कुछ मिलेगा ,
अनुरागी धुंध prakash
लेकिन मुश्किल है, की भाजपा ही नहीं उसके आस पास के संगठन भी इसी पसोपेश में हैं समझ ही नहीं प् रहे की करें क्या समाज के बीच जाओ काम करो पसीना बहाओ फ़िर कुछ मिलेगा ,
अनुरागी धुंध prakash
Friday, August 21, 2009
अभी तक धुंध नहीं छटी
मित्रो देश कालओर परिस्थिति ये चीख चीख कर कह रही है किधुंध छंटने कि जगह बढती जा रही है एक दिन किसी ने कहा कि हमारे यहाँ यानि उत्तराखंड में साहित्यकार मुखिया बना है, उनके अंदर संवेदना है कुछ हालत बदलेंगे लेकिन अगले ही दिन कुछ लोग कहने लगे कि छद्म साहित्यकार हैं कोई राजनीतिज्ञ साहित्यकार नहीं हो सकता उसके अंदर संवेदना होगी भी तो राजनीती कि भेंट चढ़ चुकी होगी , फ़िर पिथोरागढ़ में बादल फट गए समस्या ओरगहरी हो गई विपछ तो तैयार ही था चिल्लाने लगा , कुदरत कि मार फ़िर विरोधियों की धार फ़िर भी सब चलता है, धुंध कम नहीं हुई अबकी बार तो जो मुखिया की दौड़ में थे दोनों ही साहित्यकार थे , माननीय निशंक जी ओर माननीय पन्त जी संवेदना के धनि दोनों ही लेकिन विद्वान् कहते हैं किसंवेदनाओं से राज नहीं चलते , अब कौन चलाये हम आपसे पूछते हैं कि कौन चलाये , बहुत दिनों से बड़ी पोस्ट भेजने का अवसर नहीं मिल रहा छमा करना व्यवधान गया फ़िर मिलेंगे
आपका अनुरागी
आपका अनुरागी
Wednesday, June 24, 2009
सांसो से सांसों का रिश्ता
बहुत दूर तक देखो हमारी सांसों का एहसास बड़ी सिद्दत से महसूस करोगे , दोस्तों ये दुनिया जिसे कुछ लोग भ्रम कहते हैं, और कुछ लोग इसे उपभोग समझाते हैं, लेकिन जीवन ब्रहमांड और प्रकृति कैसे आपस में गुंथे हुए हैं, इसे समझने के लिए अपने अंदर जगानी है संवेदनाओं की प्यास अनुभूतियों की भूख और हमारा साथ, हमारे से तात्पर्य साहित्य और अध्यात्म,
मनोज अनुरागी
मनोज अनुरागी
Tuesday, May 12, 2009
भड़ास blog: भड़ास निकालने के लिए आपका स्वागत है!!!
hamse bahur door ek duniya hai. jo hamare hi charon oor faili hai, ham us chetana tak pahunchana chahte hain,
Manoj anuragi
Manoj anuragi
ये है धुंध जगत
मित्रों,
ये जगत एक विराट धुंध में खोया हुआ जीव जगत है। जीवन में कैसी-कैसी धुंध है, हम अपने अनुभव आपके साथ बाँटने के लिए आ गए हैं धुंध जगत लेकर। मैं हूँ मनोज अनुरागी। एक ऐसा व्यक्ति जो संवेदनाओं के स्तर पर जीवन की परिकल्पना करता है। और आपसे भी उम्मीद करता है की आप भी इस संवेदना के स्तर पर अपनी चेतना को लाने का प्रयास करेंगे।
आप तैयार हो जाइये इस धुंध से परिचित होने के लिए।
आपका मनोज अनुरागी
ये जगत एक विराट धुंध में खोया हुआ जीव जगत है। जीवन में कैसी-कैसी धुंध है, हम अपने अनुभव आपके साथ बाँटने के लिए आ गए हैं धुंध जगत लेकर। मैं हूँ मनोज अनुरागी। एक ऐसा व्यक्ति जो संवेदनाओं के स्तर पर जीवन की परिकल्पना करता है। और आपसे भी उम्मीद करता है की आप भी इस संवेदना के स्तर पर अपनी चेतना को लाने का प्रयास करेंगे।
आप तैयार हो जाइये इस धुंध से परिचित होने के लिए।
आपका मनोज अनुरागी
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