मित्रो देश कालओर परिस्थिति ये चीख चीख कर कह रही है किधुंध छंटने कि जगह बढती जा रही है एक दिन किसी ने कहा कि हमारे यहाँ यानि उत्तराखंड में साहित्यकार मुखिया बना है, उनके अंदर संवेदना है कुछ हालत बदलेंगे लेकिन अगले ही दिन कुछ लोग कहने लगे कि छद्म साहित्यकार हैं कोई राजनीतिज्ञ साहित्यकार नहीं हो सकता उसके अंदर संवेदना होगी भी तो राजनीती कि भेंट चढ़ चुकी होगी , फ़िर पिथोरागढ़ में बादल फट गए समस्या ओरगहरी हो गई विपछ तो तैयार ही था चिल्लाने लगा , कुदरत कि मार फ़िर विरोधियों की धार फ़िर भी सब चलता है, धुंध कम नहीं हुई अबकी बार तो जो मुखिया की दौड़ में थे दोनों ही साहित्यकार थे , माननीय निशंक जी ओर माननीय पन्त जी संवेदना के धनि दोनों ही लेकिन विद्वान् कहते हैं किसंवेदनाओं से राज नहीं चलते , अब कौन चलाये हम आपसे पूछते हैं कि कौन चलाये , बहुत दिनों से बड़ी पोस्ट भेजने का अवसर नहीं मिल रहा छमा करना व्यवधान गया फ़िर मिलेंगे
आपका अनुरागी
Friday, August 21, 2009
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