Sunday, March 1, 2015

नाविक
पतवार सहेजो नाविक धीरे,
अब जाना है उस पार-

अभी यह मधुर चाँदनी रात
कल-कल लहरों का साथ
हृदय से झरता प्रेम-प्रपात
हो जाने दो आत्म सात
अभी है दूर प्रभात
होने दो मधुर मिलन बनने दो सौगात।
प्रथम हुआ साक्षात्कार
स्नेहमयी यह सुलभ प्यार
आज फिर हो जाने दो अंगीकार-

प्रथम मिलन की मधुर बात
छुपा है जिसके कण-कण में सुखगात।
जग करता जिसका प्रतिकार
उसी से मिला प्रणय अपार
शशि किरणों का साथ, हृदय उद्गार-

नदी की धारा पर प्रति भार।
जो दूर दिखायी देता है
वह पास हमारे लगता है
हाँ! उसी ओर तो चले जा रहे
यह क्या? प्रतिक्षण उनसे दूर जा रहे
सोच रहे करने आये मेरा सत्कार
नहीं! नहीं!! यह कपट प्यार-
अब जाना है उस पार।

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